भुवनेश्वर/नयी दिल्ली। भारतीय हॉकी के पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों ने मंगलवार को विश्व कप में ‘औसत’ प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय टीम की आलोचना की जिसमें टीम क्रॉसओवर में न्यूजीलैंड से हारकर क्वार्टरफाइनल की दौड़ से बाहर हो गई। पूर्व दिग्गजों ने कहा कि इस लचर प्रदर्शन से तोक्यो ओलंपिक में एतिहासिक कांस्य पदक जीतने के बाद देश ने जो लय हासिल की थी वह रुक गई। भारत 1975 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद पहली बार विश्व कप में पोडियम पर जगह बनाने के इरादे से इस बार टूर्नामेंट में उतरा था लेकिन क्रॉसओवर मैच में सडन डेथ में न्यूजीलैंड से हार गया।
मेजबान टीम गुरुवार और शनिवार को राउरकेला में नौवें से 16वें स्थान के क्लासीफिकेशन मैच खेलेगी। विश्व कप 1975 की स्वर्ण पदक विजेता टीम के सदस्य अशोक कुमार ने कहा कि भारतीयों में स्तरीय खेल की कमी है और वे खेल के सभी विभागों में शीर्ष देशों से बहुत नीचे हैं। उन्होंने कहा कि टीम को हर तरह का सहयोग दिया गया, छह से सात महीने का शिविर, विदेशी अनुभव, शीर्ष स्तर का बुनियादी ढांचा, सर्वश्रेष्ठ खानपान, और क्या किया जा सकता था? और उन्होंने क्या प्रदर्शन किया? आप घरेलू विश्व कप में अपने प्रशंसकों के सामने क्वार्टर फाइनल में भी नहीं पहुंचे।
अशोक कुमार ने कहा कि खिलाड़ियों के स्तर के साथ इसका बहुत कुछ लेना-देना है, आखिरकार हार औसत खिलाड़ियों के औसत खेल खेलने के कारण हुई। इससे आप विश्व कप में पदक नहीं जीत सकते। इस पूर्व खिलाड़ी ने कहा कि मुझे नहीं पता कि खिलाड़ियों को कैसे प्रशिक्षित किया गया, कोई रचनात्मक पास नहीं था। वे नहीं जानते थे कि क्या करना है। यदि आप वेल्स जैसी टीम के खिलाफ चार से अधिक गोल नहीं कर सकते हैं, तो आप क्या कर रहे हैं?
उन्होंने कहा कि मैदानी गोल नहीं होने के कारण उन्हें पेनल्टी कॉर्नर पर निर्भर होना पड़ा और हरमनप्रीत सिंह पर काफी दबाव था और वह असफल रहा। हम खेल के सभी विभागों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके। आकाशदीप सिंह को छोड़कर मैं कहूंगा कि कोई (आउटफील्ड) खिलाड़ी चार मैचों में अच्छा नहीं खेला। यह पूछे जाने पर कि क्या कोचिंग स्टाफ में बदलाव होना चाहिए, 1975 के विश्व कप फाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कहा कि हमारे पास अतीत में कई विदेशी कोच रहे हैं लेकिन 1975 के बाद विश्व कप में हमारी उपलब्धि क्या है? तो कृपया मुझे बताएं कि अगर हमारे पास भारतीय कोच होते तो क्या अंतर होता। भारतीय कोच कम से कम बदतर प्रदर्शन तो नहीं करते।
पूर्व कप्तान सरदार सिंह ने कहा कि टीम की सामूहिक विफलता के कारण यह हार हुई है। उन्होंने कहा कि हॉकी एक टीम खेल है। यदि आप एक टूर्नामेंट जीतना चाहते हैं तो टीम के 14 से 15 खिलाड़ियों को 70 से 80 प्रतिशत प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है जो कि इस विश्व कप में नहीं दिखा। हॉकी इंडिया की चयन समिति में शामिल इस दिग्गज मिडफील्डर ने कहा कि हार्दिक की चोट एक बड़ा झटका थी क्योंकि वह मिडफील्ड में मुख्य खिलाड़ी थे। उन्होंने (स्पेन के खिलाफ) एक गोल करने के अलावा फारवर्ड के साथ साझेदारी करके मौके बनाए थे। सरदार ने इस बात से भी सहमति जताई कि हरमनप्रीत ने कप्तानी का दबाव महसूस किया क्योंकि वह लगातार पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करने से चूके।
उन्होंने कहा कि उन्होंने (हरमनप्रीत) कप्तानी का दबाव महसूस किया, वह भी घरेलू विश्व कप में। वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकरों में से एक हैं और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। इस पूर्व खिलाड़ी ने कहा, ‘‘लेकिन वह अपना सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं दिखा, शायद वह दबाव महसूस कर रहा था। मुख्य कोच ग्राहम रीड की मानसिक अनुकूलन कोच की मांग पर सरदार ने कहा कि अगर उन्हें (रीड को) ऐसा लगता है तो उन्हें ओलंपिक के बाद यह मांग उठानी चाहिए थी। हॉकी इंडिया और साइ टीम को सभी जरूरी मदद मुहैया करा रहे हैं और वे इसे भी पूरा करते।
हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की ने कहा कि दो साल से भी कम समय पहले तोक्यो ओलंपिक में उच्च स्तर के प्रदर्शन के बाद विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में नहीं पहुंचना बहुत निराशाजनक है। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ खिलाड़ी जिनसे हमें काफी उम्मीदें थीं, वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। हम सभी ने इसे स्वीकार किया है। हमें कई पेनल्टी कॉर्नर मिले लेकिन हम उनमें से कुछ पर ही गोल कर पाए। हमारे रक्षात्मक ढांचे में भी कुछ कमी थी।
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