जरुरी नहीं है कि आपकी प्रबलता हर जगह काम आए अतुल मलिकराम, बिज़नेस कंसल्टेंट और राजनीतिक रणनीतिकार

जरुरी नहीं है कि आपकी प्रबलता हर जगह काम आए अतुल मलिकराम, बिज़नेस कंसल्टेंट और राजनीतिक रणनीतिकार 

इंसान को कई बार घमंड हो चलता है, कभी अपने रुतबे का, तो कभी अपने इंसान ही होने का। वह अक्सर दुनिया में रहने वाले सभी प्राणियों को खुद से कम ही आँकता है। मैं आज तक नहीं जान पाया कि भला इसके पीछे वास्तव में कारण क्या है? क्या यह इंसान को मिली बोली है, जो उसके घमंड का कारण बनती है, जो किसी अन्य प्राणी को नहीं मिली? या फिर वह सक्षमता, जिसके चलते उसे खुद को छिपाने के लिए छत और चार दीवारी मिली है? वह पैसा या दौलत, जिसके आगे-पीछे इंसान घूमता है, या फिर दो वक्त की रोटी, जिसे वह कमाकर खा सकता है?


इंसान शायद यह समझता है कि उससे ऊपर और उससे प्रबल कोई नहीं है, लेकिन वास्तव मैं है, जिसे वह सिर्फ अपने बुरे समय में याद करता है। वह कौन है, यह लेख पढ़ने के बाद आप भी समझ जाएँगे। 


तब तक मैं इसे आपको एक प्रबल किरदार की कहानी के रूप में बताने की कोशिश करता हूँ, जो और कोई नहीं, बल्कि सबसे विशाल जानवरों में से एक कहलाने वाला हाथी है। मैं जिस हाथी का उदाहरण देने जा रहा हूँ, उसका नाम गजेंद्र है।


अद्भुत शारीरिक क्षमता और प्रबलता का धनी गजेंद्र, अपने क्षेत्र में बड़ा ही प्रभावशाली माना जाता था। उसके भरे-पूरे परिवार में कई पत्नियाँ, बाल-बच्चे और नाते-रिश्तेदार थे। किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। संपन्नता से अभिमान पनपना तो स्वाभाविक था।


एक बार गजेंद्र अपने परिवार के साथ एक तालाब में पहुँचा। अपनी पत्नियों, बच्चों और स्वजनों के साथ गजेंद्र आनंदमग्न होकर जल में अठखेलियाँ कर रहा था। लेकिन उसका प्रबल शरीर, क्रियाकलाप और शोर-शराबे से तालाब में रहने वाले प्राणियों के बीच काफी हलचल मच गई। वहीं एक मगरमच्छ भी आराम कर रहा था। गजेंद्र की अठखेलियाँ काफी देर से उसके आराम में विघ्न बन रही थी। नींद खराब होने की वजह से मगरमच्छ को इतना गुस्सा आया कि उसने पानी के भीतर ही गजेंद्र का पैर अपने मुँह में दबोच लिया।


गजेंद्र को अपनी अपार शक्ति का बहुत घमंड था। उसने एक झटका देकर मगरमच्छ को दूर करना चाहा। लेकिन, शायद उसे नहीं पता था कि जल का जीव, जल में अत्यधिक बलशाली होता है, फिर भले ही उसके शिकार का आकार उससे कितना ही बड़ा हो, यह मायने नहीं रखता। गजेंद्र मगरमच्छ के मुँह से अपना पैर नहीं छुड़ा सका। उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी। गजेंद्र के साथ उसकी पत्नियों और संतानों ने भी एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। 


गजेंद्र और मगरमच्छ के बीच यह जंग घंटों चलती रही। लेकिन मगरमच्छ था कि मानने को तैयार ही नहीं था। गजेंद्र असहाय होने लगा। पत्नियों, संतानों और परिजनों ने भी हार मान ली। उदास मन के साथ वे घर को लौटने लगे और देखते ही देखते कुछ देर बाद गजेंद्र वहाँ बिल्कुल अकेला रह गया। छटपटाते हुए गजेंद्र को मगरमच्छ खींचता हुआ गहरे पानी के भीतर लिए जा रहा था। 


गजेंद्र को वह मगरमच्छ यम के दूत जैसा प्रतीत हुआ। उसे अपना अंत समय नज़र आने लगा। जन्म से लेकर मरण तक की यात्रा फिल्म के समान उसके मन में चंद मिनटों में दौड़ गई। अच्छे-बुरे सारे कर्म याद आ गए। जीवनभर में कमाया हुआ रुतबा और सारा का सारा घमंड मगरमच्छ के मुँह में चला गया था। पत्नी, बच्चे और परिजन उसका साथ छोड़ चुके थे। मृत्यु सामने खड़ी थी। बचने की सभी उम्मीदें पानी में डूब चुकी थीं। शारीरिक बल कुछ भी नहीं है और सारे सहारे व्यर्थ हैं, यह सिद्ध हो चुका था। तब गजेंद्र को भगवान याद आए। 


डूबते हुए गजेंद्र ने सूंड से एक कमल-पुष्प तोड़ा और ईश्वर से रक्षा की गुहार लगाने लगा। गजेंद्र की करुण पुकार सुनकर श्रीहरि दौड़े चले आए। उन्होंने ग्राह से गजेंद्र की रक्षा की। कहानी का अंत 'श्रीमद् भागवत महापुराण' की गजेंद्र स्तुति से लिया है।

लेकिन यह सत्य है, व्यक्ति जब किसी मुश्किल में फंस जाता है और एड़ी-चोटी का जोर लगाकर थक-हार जाता है, तब उसे ईश्वर याद आते हैं। और ईश्वर भी उसकी मदद करने जरूर आते हैं, क्योंकि ईश्वर निःस्वार्थ हैं, और इंसान सिर्फ स्वार्थी। इंसान से ऊपर भी कोई है, वह है ईश्वर। इसलिए दुःख में ही नहीं, सुख में भी अपने आराध्य को याद करें।

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